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इक दिन ऐसा आएगा

poems and write ups
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स्कूल में जब पढ़ते थे तो दो तीन दिन ही मशहूर थे ,गणतंत्र दिवस ,स्वतंत्रता दिवस और चाचा नेहरु का जन्म दिन यानि की बाल दिवस, पर आजकल तो साल के तीनसो पैंसठ दिन कोई न कोई दिवस होता है,मदर’स डे,father डे,फ्रेंड शिप डे,वलेंतिने डे,वोमेन,स डे,टोब्बको डे,एड्स डे ,एर्थ डे ,मलेरिया डे,हेल्थ डे,हिंदी डे ,शहीदी डे ,कोई नेशनल कोई इंटर नेशनल,आज भी है एक जिसका नाम है एन्विरोंमेंट डे यानी की पर्यावरण दिवस.ऐसे पूरे साल एक एक कर कोई न कोई दिन मना लेते हैं ,वो भी वो लोग जो थोड़े बहुत पढ़े लिखे होने का दम भरते हैं या मीडिया तक जिन की पंहुंच है बाकि बेचारे तो जिंदिगी के दिन गिन गिन कर काटते है की लो भाई एक और दिन गुज़र गया राम राम करते .
बाकी दिन आप उस दिन को अगले साल तक के लिए अटारी पर रख कर भूल जाते हैं.उस दिन भी कुछ ख़ास नहीं हो पाता -हाँ कुछ गोष्ठियां,सेमीनार,कविता पाठ,कुछ सरकारी ,कुछ गैर सरकारी आयोजन बच्चों के लिए चित्र कला प्रतियोगिता,निबंध लेखन और नीति वाक्य (स्लोगन राइटिंग )वगैरह करवा लिए जाते हैं या फिर एक नया फैशन चल गया ,मानव श्रृंखला बनाओ या marathon race का आयोजन करो जिसमे कुछ नामचीन लोग 10-12 kadam चल कर फोटो खिंचवा लेते है अखबार में छपवाने के लिए . लो मन गया जी डे -नतीजा क्या?? ,कुछ नहीं, वही ढाक के तीन पात ,सिफार यानि की जेरो अंडा -एक दिन में क्या होता है जी अगले साल ज़रा जल्दी तयारी शुरू कर देंगे .हिन्दुस्तान में तो वैसे ही सारे काम नारों से जुलूसों से ,चंदेल मार्च करके या फिर तोड़ फोड़ करके निकाल लिए जाते हैं .जागरूकता लाओ बेटी बचाओ,जागरूकता लाओ,एड्स से बचो ,जागरूकता लाओ पर्यावरण बचाओ –भाई कैसे बचाओ तुम खुद ही तो बर्बाद करने पर तुले हो प्लास्टिक जैसी चीज़ का का अधक से अधिक प्रयोग करते हो क्यों की ये सस्ता सुंदर और टिकाऊ है नष्ट ही नहीं होता अगर होता है तो ज़हर उगलता है ,जलाओ तो हवा ज़हरीली,बहाव तो पानी और दबाओ तो मिटटी में ज़हर घुल जाता है और ऐसे छोड़ दो,जैसा की हमारे यहाँ होता है तो हर जगह कूड़े और गन्दगी के ढेर लग जाते हैं नाले पट जाते हैं बागों में फूलों की जगह फटे पुराने रंगीन पोलिथीन उगे लगते हैं.ज़मीन और पानी से ज़हर हमारी फसलों में और फिर हमारे शरीरों में घूमने लगता है. गाय माता ,औरसांड पिता पोलिथीन खा खा कर मर रही हैं ,बैलों की ज़रुरत अभी रही नहीं,खेतों में तो ट्रक्टर हल चलाते हैं. फ़क्त्रिआन ,लग रही हैं ,कारों पे कारें,मोटर साइकिल बन रही हैं.पेट्रोल गैस का बेहिसाब दोहन हो रहा है,लोगों के standard हाई हो गया है एक आदमी दस जनों को बिठा सकने वाली कार चलाता घूमता है ,पैदल चलने वालों के लिए रास्ते लम्बे हैं पटरियां भी ख़तम हो गई हैं सड़क चौड़ी करने के चक्कर में , आपके पास कोई स्वचालित वाहन नहीं है तो घर बैठो ना.आज कल तो दूध वाला भी कार या मोटर साइकिल या फिर छोटा हाथी लेकर दूध देने आता है,जिधर जाओ भीड़ ही भीड़ नज़र आती है आदमिओं की खेत खलिहान और शहर से दूर के जंगल सबको समतल कर दिया बैलों की ज़रुरत अब नहीं रही सांड बने घुमते है आपस में लड़ते या फिर लोगों को डराते वो बिचारे जाएँ भी कहाँ उनके लिए कोई जगह नहीं शेर चीते भालू बाघ सब ख़त्म हो गए जो बिचारे बचे हैं कभी कभी हारा किरी करने शहर आ जाते हैं -जंगल तो अब बचे नहीं तो उनके लिए जू है -पर जू में भी कितनो का गुज़ारा होगा.हरयाली तो गमलों में सिमट कर रह गयी है या फिर अमीर लोगो के रिसोर्टों में.बाद और पीपल को बोनसाईं बना कर रख लिया जायेगा पोजा वग्र के लिए थोड़ी बहुत सब्जी जो मिल जाती है उअको भी अब मिनिअचुर रूप में रखा जायेगा.हो सकता है की गोली खाकर पेट भर जायेगा.जीभ के स्वाद को भूल जाओ.
आजकल आदमी माया दास हुआ पड़ा है जिस चीज़ को हाथ लगाता है -चाहे कोयला हो या पत्थर ,ज़मीन हो या हवा ,पानी सब माया उगलने या निगलने लगते हैं ओक्सिजन के लिए सिलिंडर मंगाना पड़ेगा ,प्राकृतिक हवा तो इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि नाक बंद कर बाहर निकलना पड़ता है ,पानी बोतलों में मिलता है अभी तक तो ३०-४० रूपए में मिल जाती है आगे का अल्लाह ही बेली है.ज़मीन का तो पूछो ही मत १-१ इंच पर इमारत बन रही है ज़मीन के नीचे तहखाने गुलो गुलज़ार है और ज़मीन के ऊपर इतनी ऊंची कि आकाश छू लेंगी जैसे.पर मैंने तो लोगों को सर्दी,गर्मी बारिश में ,सड़कों पर पड़े देखा है ,कहीं तो एक आदमी के लिए १० कमरे हैं कहीं २० लोग १ कमरे में ठुसने के लिए लाचार हैं . असंतुलन तो होगा ही वातावरण में भी पर्यावरण में भी,और दिमाग में भी.सिर्फ आदमी ही आदमी दिखेंगे ,जैव विविधता किस चिडिया का नाम है ,समंदर कि भी सब मछ्ह्लियाँ, ,वेहल और दुसरे प्राणी मर जायेंगे क्यों कि वहां भी आदमी ने अपना जाल फैलाना शुरू कर दिया ,मंगल गृह पर भी नज़र है इसकी . पर अगर कोई और प्राणी नहीं बचेगा तो आदमी खायेगा क्या और पीएगा क्या ???क्यों जी कान्निबालिस्म नहीं सुना क्या अपने जहाँ अपनी प्रजाति के लोग अपनी ही प्रजाति के लोगों का भक्षण कर लेते हैं .और बर्बाद करने को तो सुनामी है,ओजोन परत का छेद है,दावानल हैं बद्वानल,भू स्खलन है,विकिरण है,भूकंप है.कैसे बचोगे बच्चू अब तो माटी की बारी है ,तुमने उसे बहुत रौंदा है अब वो तुम्हें रौंदने के लिए तैयार है.

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