poems and write ups
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जाने कहाँ कहाँ से आ आ के मिले हम
और बन गए सखा ,दोस्त ,मित्र ,मीत.
जीवन की अंगीठी पर रखी थी
ब्रह्मांड की वृहद कढाई
चला रहा था जिसमें -इश्वर
समय का विशाल करछुल
लगा कर छौंक सुख का और दुःख का
ग़म और ख़ुशी का ,और पका रहा था
तरकारी हमारी दोस्ती की
कुछ खट्टी,कुछ चटपटी
देखो तो ,चखो तो ज़रा
कितनी सोंधी सोंधी खुशबू
देती पकी है अपनी दोस्ती
पक्की है अपनी दोस्ती
ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे.
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