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सावित्री
सब कुछ तो कितना अच्छा चल रहा था आरती के जीवन में,बस वो और उसका प्यार करने वाला पति सारा दिन एक दूसरे की आवश्यकताओं ,इच्छाओं और आकांक्षाओं की पूर्ती में लगे रहते दोनों ! दिन कैसे व्यतीत हो जाते कुछ पता ही नहीं चलता! इकलौती बेटी सुख से अपने पति और बच्चों के साथ विदेश में अवस्तिथ.!लेकिन जैसे हाथ से ५६ भोग वाला थाल झन्न से धरती पर गिर जाए और सब कुछ बिखर जाए , ऐसा ही कुछ हुआ उसके साथ जब उसे पता चला की जिस साधारण से दिखने वाले बुखार से कई दिन से उसके पति आशीष पीड़ित थे ,वो ब्लड कैंसर की वजह से था.आरती के पाँव तले की ज़मीन खिसक गयी और आसमान उसके ऊपर टूट पड़ा उसे समझ ही नहीं आया की वो क्या करे !अभी तो आशीष को भी नहीं बता सकती! सारे मित्रों और नज़दीक के रिश्तेदारों से मंत्रणा की गयी और आशीष को एक अच्छे हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया .फिर तो जैसे होता है सभी अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए और आरती अकेली रह गयी यमराज से टक्कर लेने को !लेकिन आरती भी जीवट वाली थी उसने हिम्मत नहीं हारी साथ दिया उसकी बेटी ने जो खबर पाते ही विदेश से दौड़ी चली आई उसने सब कुछ अपनी माँ को समझाया डॉक्टरों से बात की रक्तदाताओं के नंबर ढूंढें लिस्ट बनाई और उनसे बात की ताकि वो समय पर उसके पिता के लिए रक्त दे दें.इतना सब कुछ प्रबंध करने के बाद वो लौट गयी! एक बार फिर आरती अकेली थी वो आशीष और अस्पताल के चक्कर ,दवायिआन,रक्त,डॉक्टरों से मुलाकात ,अनगिनत टेस्ट उनकी रिपोर्ट का अर्थ सारा दिन चक्करघिन्नी की तरह बस चक्कर काटती रहती ! अपनी और तो कोई ध्यान ही नहीं बस किसी तरह आशीष ठीक हो जाएँ उसे और कुछ नहीं चाहिए.उसकी मेहनत आखिर रंग लेही आई एक बार फिर आशीष अपने पैरों पर खड़े हैं और जल्दी पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त कर लेंगे ऐसी आशा है! मैंने आरती का नाम सावित्री रख दिया है.
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