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.पिया का घर प्यारा लगे:
मीता जब नीलाभ के गाँव आयी, घर की औरतें चिंता में बैठी थीं पता नहीं शादी कैसी हुई होगी, सब कुछ ठीक ठाक हुआ हो ,कोई झगडा फसाद न हुआ हो अंतरजातीय विवाह था न उनका.मीता को गाँव का माहौल विचित्र सा ही लगा न कोई रौशनी न कोई कुम कुमे बस शाम का अँधेरे को चीरता एक छोटा सा बल्ब-.खाना भी नहीं बनाया था उन्होंने ,उसके आने के बाद ही हलचल शुरू हुई कुछ थोडा बहुत इंतजाम किया गया पर मीता खुश थी उसको उसका मनका मीत मिल गया था !उसे प्रतीक्षा थी तो बस उस एकांत की जब वो और नीलाभ होंगे और कोई भी नहीं ! पर सब ऐसे ही बैठे थे!मीता को बेचैन देख कर उसकी सबसे बड़ी ननद बोली “के सोवेगी मीता ??जा व खाट पे गूद्ड़े पड़े सें सो जा “मीता ने नज़रें उठा कर देखा मैले कुचैले से दरी बिस्तरे !उसने सर हिला दिया !उधर नीलाभ की हालत भी ऐसी हो रही थी वो उप्पर नीचे चक्कर काट रहा था तभी फिर उसकी ननद ने हँसते हुए कहा “म्हारे धौरे को नि सोवे जा उप्पर जा के सोजा मीता वा देख नीलू भी चक्कर काटन लाग रया सै”और वो शर्म से गुलाबी होती मीता को नीलाभ के कमरे में जो की छत पर था छोड़ आई एक नई चादर और दरी बिछा दी गयी तो मीता की जान में जान आई !और फिर वो भविष्य सपने चुनते बुनते सो गए सुबह उसकी सास उप्पर आई उहोने मीता को जी भर के प्यार किया ! उसके बाद तो तांता लग गया ,जिसने सुना नीलू की बहु आई ही वो दौड़ा चला आया क्या बच्चा क्या बूढा सब उसको आशीर्वाद और मुंह दिखाई दी ! मीता की साड़ी आशंकाएं दूर हो गयीं उसने सोचा जहाँ इतना प्यार है वो किसी भी हाल में रह लेगी चाहे कोई शेहरी सुविधा हो न हो !सुबह चूल्हे पर रोटी बनती सिर्फ दाल दही और ताज़ा मक्खन मीता और नीलाभ इक्कठे बैठ कर खाते मीता की जेठानी गर्म गर्म फुल्के बनाती उसकी सास उस परढेर सा मक्खन रख कर परोस देती और बच्चे उत्सुकता से उन्हें घेर के बैठे रहते अपनी चाची के आसपास उसके घने लम्बे बालों को छूते कभी उसकी रेशमी साडी को सहलाते अगर वो उठ के चलती तो उसके पीछे पीछे कुर्सी लेकर चलते कि चाची कहाँ बैठेगी बाकि सब या तो ज़मीन पर या पीढ्हों बैठते थे !पहले दिन तो कमाल ही हो गया स्कूल के बच्चे और अध्यापिकाएं सब ही उसे देखने आगये थे और उसकी सास को कहना पड़ा था ” ऐ बेटी तले ने आ जा ,छत काच्ची सै टूट जागी” दो दिन बाद उन्हें वापस अपने काम पर लौटना था ,मीता ने दो ही दिन में अपने स्वाभाव से सब का मन मोह लिया था और तो और उसने चूल्हे पर रोटी भी बनाई,बस सब खुश हो गए कि” इतनी पढ़ी लिखी,सुथरी बहु रोटी भी पो लै सै” !मीता के पापा एक बड़े अफसर थे और वो कभी गाँव में नही रही थी पर उसके माता पिता ने उसको पढाई के साथ साथ गृहकार्य भी सिखाया था और उसकी माँ उसे हमेशा बताती थी कैसे वो दिल्ली कि लड़की थी और उनका विवाह एक छोटे से कसबे में हुई पर उन्होंने अपनी ससुराल को अपनाया अपने सास ससुर की सस्नेह सेवा की ,फिर मीता बचपन से ही तो देखती आरही थी किदादी और माँ मिलजुल कर सब काम करती दादी ने माँ को मठरी,पापड़ बनाने ,गुझिया और जावे बनाने भी सिखाये ! माँ ने कहा था कि तुम जिस से प्यार करते हो उस से जुडी हर चीज़ तुम्हें प्यारी लगती है और मीता ने ये बात गाँठ बाँध ली थी और उसने पाया कि उसके थोड़े से प्यार के इज़हार ने उसको ढेरों प्यार दिलवाया ! मीता ने सोच लिया था की वो अपने बच्चों को भी ऐसे ही प्रेम की शिक्षा देगी.
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