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चींटियाँ
सुबह उठी तो नीलू ने देखा कि चींटियों कि एक लम्बी कतार फर्श से चढ़ कर पलंग पर उसके नन्हे बेटे के मुंह की ओर आरही थीऔर आँखों के गिर्द तो उन्होंने झुण्ड सा बना लिया था ! वो घबरा गई उसने अपने बच्चे को को देखा तो वो निस्पंद था, उसने उसके नन्हे से सीने को देखा वो धड़क नहीं रहा था वैसे तो जान तो तो उसमे पहले भी न के ही बराबर थी जैसे सिर्फ सांस चल रही हो या दिल हलके हलके धड़क रहा हो पर न तो उस बच्चे को दिखाई देता था न सुनाई जीवन के कोई अन्य चिन्ह भी नहीं थे ११ माह का हो चुका था पर कभी उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई हाँ उसका शरीर दिन में कई बार अकड़ जाता और फिर एक झटके से निढाल हो जाता डॉक्टर इसे कनवल्शन या फिट कहते थे ! दूध भी वो नाम मात्र को पीता और रोने में भी एक हलकी कुनमुनी सी आवाज़ करता! उसके जीवन के ११ महीने नीलू ने कैसे काटे नीलू को ही पता है.उसे स्पष्ट स्म्रण है जनवरी की वो सर्द स्याह रात हब चंडीगढ़ के सबसे बड़े हॉस्पिटल(PGI) के ठन्डे लेबर रूम में वो स्टील के बिना चादर वाले स्ट्रेचर पर लेटी थी डॉक्टर उसकी पीड़ा से अविचलित एक चिट्ठी लिख रही थी दूसरी जूनियर डॉक्टर अन्य मरीज़ों को शोर न मचाने की हिदायते दे रही थी और नीलू सर्दी और पीड़ा से कांपते हुए सोच रही थी कि लोग कितने संवेदन हीन लोग हैं ये उसने अपने दांत भींच लिए थे ताकि कराह न निकले, तभी बच्चे के जन्म हो गया फिर उसे और बच्चे को अलग अलग कमरो में लेजाया गया !बच्चे का तो पता नहीं नीलू का कमरा बिलकुल ठंडा और अँधेरा था और उसके कपडे भी गीले और रक्त रंजित ही होगे काफी देर बाद घरवालो ने हज़ार मिन्नतें कीं तब कहीं जाकर उसको घर से लाये कपडे दिए गए जो उसे खुद ही बदलने पड़े !पूरा दिन किसी को उस से मिलने नहींदिया अशक्त होने के बावजूद उसे खुद ही वाश रूम जाना पड़ा !और नीलू सोचती रही ये कैसा हॉस्पिटल है !अगले दिन सुबह ही एक लड़का सा डॉक्टर आया उसने बताया की आपके बच्चे को नर्सरी में शिफ्ट कर दिया गया है क्युकी उसको फिट्स आरहे हैं !नीलू को कुछ भी समझ नहीं आरहा था! उसे भी महिला वार्ड में रख दिया ! कई दिन तक उसे वहाँ रखा गया बच्चे को दूध पिलवाने उसके पास लाया जाता पर वो बहुत ही कम पी पाता! फिर एक दिन उसे वहाँ से छुट्टी मिल गयी डॉक्टरों ने बताया की बच्चे को सेरिब्रल पाल्सी है और ये ठीक नहीं होगा ! कोई कारण निवारण नहीं था ! कुछ दिन मम्मी के पास रहने के बाद वो अपने घर आ गयी और फिर शुरू हुआ हॉस्पिटल्स का चक्कर बच्चों के हॉस्पिटल कलावती सरन में और आल इंडिया मेडिकल साइंसेज लेजाती उसके व्यायाम कराती अकेली बस में बच्चे और उसके सामान को लेकर आती जाती ! बच्चे की दशा में कोई सुधार नहीं था हाँ उसका कद और वज़न तो बढ़ रहा था लेकिन कोई प्रतिक्रिया किसी भी तरह की नहींदिखाता था चाहे आप उसके साथ कुछ भी कर लो !कुछ नशीली दवाइया दी जाती थी जिस से उसे फिट कम पड़े और वो निढाल सा सोया रहता ! नीलू उसका मुख ताकती रहती शायद कोई चिन्ह !कितना सुंदर बच्चा नीली आँखें पर देख नहीं सकती ,सुनहरे बाल गोरा रंग,नन्हे नन्हे हाथ पाँव ,सुघड़ शरीर, सब कुछ सुंदर किन्तु और ये किन्तु दिन प्रति दिन विशाल काय हो कर उसके जीवन पर हावी हो गया था! जिन उपायों में कभी उसका विश्वास नहीं था वो भी कर डाले थे उसने !बहुत से लेख पढ़े इस बारे में पर कुछ बच्चे देख सुन सकते और कुछ अपने रोज़मर्रा के काम कर पाते कुछ प्रशिक्षण के बाद मुश्किल से ही सही पर इस बच्चे में तो कुछ भी नहीं था!
नीलू के जीवन से हंसी जैसे लुप्त हो गयी थी !दाम्पत्य जीवन भी भी बुझ सा गया था और सामाजिक भी, लोग उनसे पूछते और टच टच करते सहानुभूति दर्शाते !नीलू सोचती अभी तो छोटा है गोदी में उठा कर सारा काम कर लेती हूँ पर जब बड़ा हो जायेगा तो कैसे सम्भालूंगी! इसके बचपन को क्या दुआ दूं !क्या जवानी की ?? या लम्बे जीवन की ?? लेकिन चींटियों ने उसकी समस्या का समाधान जैसे कर दिया था !अब उसमे जीवन शेष ही नहीं रहा था !एक लम्बी निश्वास नीलू के अंतर से निकली जिसमे सब कुछ था मिला जुला बच्चे की मृत्यु का ,सुख बच्चे के जीवन से ,जो कि व्यर्थ था , छुटकारे का और क्षोभ कि उसके साथ ऐसा क्यूँ हुआ.?? और एक एहसास उस पर तारी होगया हल्का हल्का !
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