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चीथड़े
कल युग है,
बल युग है,
छल युग है
कैसा ये
नव युग है
कैसा है काल ये !
व्यापक है
नीरवता ,
अन्धकार
जनजन का
तन मन है
चिथड़े चिथड़े
मानवता
तार तार.
कैसी है
चाल ये
कैसा है
ये विकास
लाता है
जो विनाश
कैसा ये
नव युग है.
छल युग है
बल युग है
कल युग है
पलकों में
पल पल
तोड़ती है
लाज दम
जलती है
पग पग
चिता संस्कारों की
मोहब्बत भी
तिजारत
सियासत भी
तिजारत
बाज़ार बन
गया है
गली गली
घर घर
बिक रहा है
सब कुछ
ईमान
बिक रहा है.
इंसान
बिक रहा है
दाव पर लगा
सब कुछ
कैसा ये
नव युग है
कल युग है
बल युग है
छल युग है.
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