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कल गाँव गई थी,अक्सर ही जाती रहती हूँ !कभी किसी पारवारिक ख़ुशी में सम्मिलित होने के लिए तो कभी किसी ग़म में शरीक होने के लिए !हर बार कुछ न कुछ बदला सा लगता है ई कभी अच्छे के लिए कभी बुरे के लिए !गाँव कि गलियां अब पक्की हैं सीमेंट कि बनी,महिलाओं को अब सर पर घड़े रख कर पानी लेने नहीं जाना पड़ता घर घरमें पानी के नल लग गए हैं ! मेहनत तो बची लेकिन एक सुंदर परंपरा समाप्त हो गयी जब नवयौवनाए और नववधुएं सर और कमर पर घड़े लेकर इठलाती ,खिलखलाती और समवेत स्वरों में मधुर गीत गाती( पाई लेवन जारही मेरी सासड़ रानी —-सासु जी सुनो मेरी बाता नै ,न जाऊं पानी भरवाने या फिर मेरे सर पर बँटा टोकनी ,मेरे हाथ में नेजु डोर ,मैं पतली सी कामिनी—–)और एक और मौका उनसे निकल गया खुली हवा में कुछ देर सांस लेने और सखियों के संग सुख दुःख करने का ! खैर ये बदलाव कुछ अच्छा ही है ! बच्चे अब स्कूल कॉलेज जाते हैं हाँ आज भी लड़कियों कि शिक्षा तो उतनी ही हो पाती है जितना गाँव का स्कूल — आठवीं ,दसवीं या बारहवीं उन्हें गाँव से बाहर भेजने का रिवाज नहीं है गाँव में स्कूल भेज दिया इतना क्या कम है ! लड़कों के हाथ में मोबाइल फ़ोन ,कान में हेड फ़ोन और सवारी केलिए मोटर साइकिल आम है पढाई ऐसी कि न तो नौकरी ही मिलती है न खेती बाड़ी में दिल लगता है हाँ ग़म भुलाने के लिए गाँव के युवको में तरह तरह के नशे भी आम बात है !कुछ सुविधाएँ महिलाओं को भी मिली हैं जैसे घड़े के साथ फ्रिज और चूल्हे के साथ गैस ,पर एक बात जो आज भी नहीं बदली है वो है गाँवों में में महिलाओं कि सामाजिक स्थिति ! आज भी वोही परदे का पहरा ,अपनी बात कहने पर प्रतिबन्ध वोही मजबूरिय हालात !अपने सास ,ससुर,जेठ या किसी अन्य पुरुष के सामने कोई आसान न ले सकना ,पर्दा करना और भी हास्यास्पद लगता है जब पत्नी को औरों के सामने अपने पति के सामने भी पर्दा करना पड़ता है.और घूंघट भी कैसा या तो कुछ डाकुओं जैसा ढाटा जिसमें से सिर्फ आँखें ही दिखती हैं या फिर कुछ ऐसा जैसे कफ़न ओढ़े लाश सीधी खड़ी होकर चली आरही हो !सिर्फ पर्दा ही एक चीज़ नहीं है उनके दमन के लिए ,पारिवारिक संपत्ति में कानूनन हक़ होने के बावजूद उन्हें दिया न जाना ,कई बार सम्बन्ध बिगड़ने के डर से और मायेके में आना जाना बंद न हो जाए इसलिए लड़कियां खुद ही अपना हक़ छोड़ देती हैं ! आज भी गाँवों कि खाप पंचायतें सदियों पुराने तौर तरीके अपनाती हैं खास तौर पर औरतों के बारे में !भ्रूण हत्या के द्वारा लड़कियों को जन्म ही नहीं लेने दिया जाता ,जब कि अगर वो प्रेम विवाह करलें तो उन्हें उनके मातापिता या रिश्ते दार अपने हाथों से ही मार डालते हैं घर कि इज़ज़त के नाम पर !ऐसा नहीं है कि गावों कि महिलाएं लड़ती नहीं या बिलकुल ही बोलती नहीं वो ऐसा करती हैं पर अधिकतर महिलाओं के के खिलाफ ही यानि बहु और सास ,ननद और भाभी,जेठानी और देवरानी छोटे छोटे हक़ कि लड़ाई! क्यूँ नहीं वो इस सब से ऊपर हो कर अपने अधिकारों के लिए लड़ती जैसे शिक्षा का अधिकार ये एक ऐसा अधिकार है जिस कि सहायता से वो अपने अन्य छीने गए अधिकार प्राप्त कर सकती हैं!
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