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क्रांति

poems and write ups
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क्रांति

आओ मिल कर बिगुल बजाएं
मुट्ठी बांधे हाथ उठायें ,
करें विरोध उन
बुरायिओं ,कुरीतियों
और विसंगतियों का
व्याप गयी है जो ,
भारत के जन जन में
जन जन के तन मन में
करें क्रांति अराजकता,
असमानता,असहिष्णुता के विरुद्ध
आओ मिल कर करदें
नष्ट उनको जो बोते हैं ज़हर
और काटते हैं घृणा
जो लड़ाते हैं हिन्दू को ,
मुस्लिम से सिख से ,ईसाई से
,एक को दुसरे से ,भाई को भाई से
आओ कर दें शंखनाद ,ऐसे लोगो
के खिलाफ जो भारत जैसे
अहिंसावादी देश में फैलाते हैं
हिंसा -धधकाते हैं नफरत की आग ,
और बुझने नहीं देते
दर्द के टीसते शोले,
उड़ेल गरल का तरल !
आओ मिटा दें जड़ से
वासना का नग्न नृत्य करते ,
उस दानव को जो लरकता है
शहर की हर गली हर कूचे में
और झपट कर अपने पंजो में
कभी भी कंही भी कर देता है
किसी बच्ची ,किसी युवती ,किसी
महिला की अस्मिता को तार तार !
आओ लाएं इंकलाब ऐसा कि
कोई भी न रहे अशिक्षित,अज्ञानी
असाह्य ,निराश्रय
लाएं घर घर उजाला ,
सिर्फ अधिकारों का ही नहीं
कर्तव्यों का भी बोध हो
जन जन को भारत के हर गण को !
आओ मिल कर आवाज़ उठायें
उन जयचंदों के विरुद्ध जो वैयक्तिक
लाभ के लिए रख रहे देश को रहन
आओ एक क्रांति लाएं

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