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ठन्डे मीठे बंगाली रसगुल्ले !
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हर गर्मी कि छुटिटियों में हम नानी के घर करोलबाग़ जाते थे !गली के सब बच्चे मिलजुल कर खेलते सुबह से ही फेरी वाले चक्कर लगाने शुरू हो जाते !कोई कुछ बेचता कोई कुछ ,बच्चो के कान एक दम खड़े हो जाते दिल कि धड़कने बढ़ जातीं और ज़ुबान पर पहचाने स्वाद कि याद पानी ले आती !जामुन वाला सर पर छाबड़ी लेकर आता आवाज़ लगाता –जामुन काले काले राम जामुन, बड़े रसीले राम और राम को राँ- आँ -आँ कि तरह लम्बा सा खींच देता ,फिर फालसे वाला आता खट्टे मीठे फालसे ठन्डे ठन्डे फालसे ! नानी इक्कनि दुअन्नी दे देती- और छाबड़ी वाला कागज़ के एक चौकोर टुकड़े में जामुन या फालसे पर थोडा सा मसाला छिड़क कर दे देता ! कभी बहंगी लटकाये चने मुरमुरे वाला आता बोलता चना जोरगरम लेलो- मसालेदार चना जोर गरम– बच्चे फिर बाहर हमें सिर्फ बिना मसाले वाले चने मुरमुरे लेने कि अनुमति मिलती शायद उसके पास एक छाबड़ी में खोये कि रंग बिरंगी मिठाई होती पर उसे खाने कि भी अनुमति हमें नहीं थी खैर हम चने मुरमुरे में ही तस्सली कर लेते थोड़ी देर को! नानी खुद भी बहुत से फल लाती अनार,केले अमरुद सेब और दोपहर को चाट बनाती चीनी ,नमक और नीबू डाल कर सब को बाँट दी जाती ! रोज़ ठंडाई भी बनाती !कुछ चीज़ें हमारे लिए वर्जित थी जैसे कमरख,इमली और चूरन हालन कि वो तो हमें बहुत ही पसंद थी चूरन वाला चूरन के लौंदे में एक पाउडर सा डालता फिर एक सलाई से उसे छो लेता और फिर भक से एक नीली नीली लपट उसमे से उठती जो हमें जादू सी प्रतीत होती हैम बच्चे बड़े कौतुहल से उसे देखते और उस चूरन को खाना चाहते पर उसको खाना मना थाक्यूंकि उसको खाने से गला और पेट ख़राब हो सकते थे नानी ,मौसी के अनुसार सो हम अपना सा मुंह लेकर रेह जाते! उसके बाद बड़े लोगों यानि मम्मी ,मौसी और नाना नानी का तो सोने का समय हो जाता वो लोग ठन्डे नंगे फर्श पर ऐसे ही या फिर चटाई बिछा कर आपस में बातें करते करते सो जाते उनकी कोशिश होती कि हम भी सो जाएँ पर ऐसा कहाँ होता हम लोग बाहर गली में खेलना पसंद करते कभी स्टापू,कभी गिट्टे ,कभी खो खो जितने भी सामूहिक खेल हमें आते थे खेल लेते एक दूसरे के घर में जाना मना नहीं था !कभी हम पड़ोस के घर में खुली दूकान से किराये पर चंदा मामा पराग जैसी बालोपयोगी पुस्तके ले आते और पढ़ते बारी बारी!शाम को एक और विक्रेता आता उसके पास एक छोटा सा शीशे का शो केस होता जिसमे चाशनी में डूबे छोटे छोटे सफ़ेद रसगुल्ले तैर रहे होते ! रसगुल्ले वाला आवाज़ लगाता ठन्डे मीठे रसगुल्ले लो बंगाली रसगुल्ले हम बच्चे भाग कर बाहर आते और ललचाई नज़रों से उन रसगुल्लों को देखते मुंह में पानी आता पर वो रसगुल्ले हम नहीं खा सकते थे क्यूंकि वो भी मना थे खुद के पैसे तो हमारे पास होते नहीं थे इसलिए मन मसोस कर रह जाते !हमारी गली से कभी कभी बारातें भी गुज़रतीं ढोल ,बैंड बाजे कि आवाज़ें हमें घर से बाहर खींच लातीं! हम देखते कुछ बच्चे अपने कन्धों पर रौशनी के कुमकुमे रख कर चलते ,दूल्हा सेहरा बांधे गले में नोटों कि माला लटकाये घोड़ी पर सवार रहता जबकि उसके दोस्त और रिश्तेदार आगे आगे नाचते हुए चलते एक और चीज़ जो हमें आकर्षित करती वो था थैली लिए हुए एक व्यक्ति जो दूल्हे पे वारफेर करके सिक्के लुटाता था और बहुत से बच्चे जो मालूम नहीं कहाँ से अचानक प्रकट होते और उन पैसों पर टूट पड़ते एक दूसरे को धकियाते गरियाते और झटसे उन पैसों को लूट लेते, हम भी उन पैसों पर बहुत ललचाते पर इसके लिए भी सब बड़े लोग हमें मना कर देते हमें समझ नहीं आता क्यूँ उन पैसों में क्या बुराई थी! एक दिन ऐसे ही एक बारात हमारे घर के आगे से गुज़र रही थी ,शाम रात को जगह दे रही थी ढोल ताशों कि आवाज़ से हम बच्चे हस्बे मामूल घर से बाहर निकल आये वार फेर करने वाले दूल्हे पर वार कर सिक्के फेंके जिसमें से कुछ बिलकुल हमारे सामने आकर गिर गए ,अब हमअपने को रोक नहीं पाये– इधर उधर देखा घर का कोई बड़ा वहाँ नहीं था -हमने झट से वो सिक्के उठा लिए अब उन्हें लेकर घर के अंदर तो जानहि सकते थे इस लिए गली के कोने पे खड़े ठन्डे बंगाली रसगुल्ले वाले से लेकर वो ठन्डे मीठे रसगुल्ले खा ही लिए –वर्जित फल का मीठा स्वाद आज भी रसना को सराबोर कर देता है बीकानेर के स्पंज रसगुल्ले भी उस स्वाद कि याद आज तक नहीं मिटा पाये हैं
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