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उड़ना चाहती हूँ मैं—

poems and write ups
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उड़ने दो मुझे ——
क्यों पंख कतरे कल्पनाओं के
क्यों डाले पहरे वर्जनाओं के
सामने मेरे है अनंत असीम निरभ्र ,
नील गगन उड़ना चाहती हूँ मैं
तौलने दो पंख उड़ने दो मुझे.
मत बनो मेरा सहारा न कोई अवलंब दो
पर न रोको राह मेरी ,जाल मत डालो
प्रेम के प्रलोभनों का विष बुझा दाना
तुम दिखाते हो कभी और कहते हो कभी
तू है कोमल ,तू है निर्बल ,और है अक्षम अभी
जान लूंगी मैं ,स्वयं कोशिश तो करने दो
ये भी हो सकताहै ,दिग्भ्रमित हो राह भटकूँ
उड़ न पाऊं, फड़ फड़ा कर पंख गिर जाऊं
फिर उठूंगी ,फिर उड़ूँगी , देखना तुम ,देख लेना
छू ही लूंगी मैं अनत ऊंचाइयां निस्सीम इस नभ की
देख लेने दो मुझे भी, स्वयं ही, विस्तार इस जग का
महसूस करने दो तन पर मुझे स्पर्श सुख ठंडी पवन का
करने दो उन्मुक्त विचरण ,सामना बेशक हो आंधियो से
तौलने दो पर , और फिर इक और, कोशिश तो करने दो
शुभ चिंतकों मेरे ,क्यों चाहते मैं पंख कुतरु कल्पनाओं के
क्यों मेरे अपने ही लगाये मुझ पर पहरे वर्जनाओं के
इस जगत को खुद अपनी ही नज़र से देखना चाहती हूँ मैं.
तोड़ हर बंधन ,इस व्योम में निर्बंध उड़ना चाहती हूँ मैं
By Jyotsna Singh
उड़ने दो मुझे ——
क्यों पंख कतरे कल्पनाओं के
क्यों डाले पहरे वर्जनाओं के
सामने मेरे है अनंत असीम निरभ्र ,
नील गगन उड़ना चाहती हूँ मैं
तौलने दो पंख उड़ने दो मुझे.
मत बनो मेरा सहारा न कोई अवलंब दो
पर न रोको राह मेरी ,जाल मत डालो
प्रेम के प्रलोभनों का विष बुझा दाना
तुम दिखाते हो कभी और कहते हो कभी
तू है कोमल ,तू है निर्बल ,और है अक्षम अभी
जान लूंगी मैं ,स्वयं कोशिश तो करने दो
ये भी हो सकताहै ,दिग्भ्रमित हो राह भटकूँ
उड़ न पाऊं, फड़ फड़ा कर पंख गिर जाऊं
फिर उठूंगी ,फिर उड़ूँगी , देखना तुम ,देख लेना
छू ही लूंगी मैं अनत ऊंचाइयां निस्सीम इस नभ की
देख लेने दो मुझे भी, स्वयं ही, विस्तार इस जग का
महसूस करने दो तन पर मुझे स्पर्श सुख ठंडी पवन का
करने दो उन्मुक्त विचरण ,सामना बेशक हो आंधियो से
तौलने दो पर , और फिर इक और, कोशिश तो करने दो
शुभ चिंतकों मेरे ,क्यों चाहते मैं पंख कुतरु कल्पनाओं के
क्यों मेरे अपने ही लगाये मुझ पर पहरे वर्जनाओं के
इस जगत को खुद अपनी ही नज़र से देखना चाहती हूँ मैं.
तोड़ हर बंधन ,इस व्योम में निर्बंध उड़ना चाहती हूँ मैं
By Jyotsna Singh

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