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व् से विकास व् से वृषभ —-(प्रतियोगिता के लिए )
वो विशालकाय वृषभ एक संकरी सी ,सड़क के बीचोंबीच बनी, पटरी की ग्रिल के बाहर बैठा अपनी शोचनीय और दयनीय स्तिथि पर आंसू बहा रहा था ! एक ज़माना था जब इनकी संख्या बहुत ही कम होती थी और जब वो कहीं से ,किसी गली मोहल्ले से अपनी मस्त चाल से चलते हुए मंथर गति से गुज़रते थे तो महिलाएं उनका तिलक करतीं उसके लिए तसले में अनाज ला कर रखती और स्नेह से उसको पुचकारती !उन्हें शक्ति और बल का प्रतीक समझा जाता ,उन्हें गौ वंश का वाहक समझते और कभी शिव जी का वाहन समझ कर पूजते थे I घर के बाहर बनी मुंडेरों पर बने कोटरों में उनके लिए पानी भर कर रखा जाता ताकि वो तृषा बुझा सकें ! फिर आज क्या हो गया है क्यों लोग अब उनकी अवहेलना करने लगे हैं क्यों उनकी संख्या इतनी बढ़ गयी है कि उनके लिए विचरण की तो क्या कहें खड़े होने या बैठने का भी कोई स्थान नहीं ! लोग उनसे भयभीत हैं और वो लोगों से ! कहीं जब झुण्ड बना कर खड़े होते हैं तो लोग उन्हें वहां से भगाने की सोचते हैं या फिर अगर कोई व्यक्ति उनके रास्ते में आजाये तो वो भय से अपना रास्ता बदल लेते हैं! कई बार वृषभों की आपसी लड़ाई की जद में आकर कभी कभी किसी व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाती है पर इसमें उनका क्या दोष है वो तो अपनी पाशविक वृति के अधीन ही हैं !उसने अपने मस्तिष्क पर ज़ोर डाला और कारण खोजने लगा तो पाया की पूर्व में तो अधिकतर नर गौशावकों को बैल बना लिया जाता था और कृषि में हल जोतने के काम में लगाया जाता था और उनकी देखभाल प्यार और मनुहार से की जाती थी गौओं का इतना मान था की हर घर में गाय पाली जाती थी और क्यूंकि उसका दूध प्रयोग किया जाता था तो उसे गौ माता का मान दिया जाता था !लेकिन अब तो तकनीकी विकास के कारण बैलों का स्थान ट्रेक्टर ने ले लिया है खेत अब भी लहलहाते लेकिन बैल अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं ! और अब बछड़ों को बैल नहीं बनाया जाता तो वो वृषभ (सांड) बन जाते हैं और उनको आवारा कहा जाता है!गौओं का भी कोई स्थान नहीं रहा अब गाय पालने की जगह नहीं घरों में !कम दूध देने के कारण दूधिये भी भैंस पालने लगे हैं !क्यूंकि गौवध के निषेध तो गाय को जीवित तो रखा जाता है पर मरणासन्न अवस्था में हड्डियां निकली ,देखभाल के आभाव में गन्दी और कीटों और मक्खियों द्वारा प्रताड़ित, जगह जगह कूड़े में मुँह मारते खाद्य अखाद्य खाती देखी जासकती है !बेचारा वृषभ सोच रहा था कि व् से वृषभ ,व् से विकास और व् से ही विनाश भी होता है!
ज्योत्स्ना सिंह
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