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अमलतास

poems and write ups
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अमलतास —-
पवन जलाती ,धरती तपती
आग बरसती ,सूरज दहके
मानुष छुपते ,पंछी दुबके
लेकिन तुम तो , खड़े
विहंसते, सड़क किनारे
बांहे खोले ,छाँह पसारे
हरे भरे पत्ते लटकाये
देते स्नेह निमंत्रण उसको
भूला भटका जो आ जाए !
नाज़ुक मोहक फानूसों की
झालर अंगूरी,डाली डाली
लटक रहे हैं सुन्दर
पीले पीले गुच्छ पुष्प के
आँखों को ठंडक पहुंचाए
मदिर मधुर हलकी सुगंध
मंद मंद चहुँ ओर बिखेरे
अमलतास तुम कितने सुन्दर
मन को मोहित करते मेरे
गत यौवन जब तुम होते हो
पुष्प वो कोमल कुम्हला जाते
झर जाते डालों से पत्ते
गहरी भूरि लम्बी फलिया
लटकी रहती अपने अंदर
बीज छिपा कर ,वो भी
आ जाएंगी काम पड़ी
नज़र जो किसी वैद्य की
फिर धीरे धीरे से इक दिन
नयी नयी कोम्पल फूटेंगी
फिर से तुम हरिया जाओगे
पीत वसन कुसुमों के पहने
मेरा मन फिर हर्षाओगे
ओ सुन्दर मोहक– अमलतास
By ——ज्योत्स्ना सिंह !

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