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नटखट कान्हा

poems and write ups
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नटखट कान्हा —

तुम भी तो वैसे हो चीकू
नटखट सा
कान्हा था जैसे
मनभावन चितचोर !

तुम भी चलते
ठुममक ठुममक
आँगन मेरे
जैसे नन्द किशोर!

हाँ पैंजनियाकी रुन झुन
मधुर ,सुनाई नहीं देती
जूतों की जलती है लाइट
और बजती है सीटी !

थिरकते हैं कदम तुम्हारे
म्यूज़िक की धुन पर,
बातें करते हो तुम
कितनी मीठी मीठी !

फ्रिज में रखे माखन को
अब तुम नहीं चुराते हो-
दही को नहीं खाते हो
हाथ न लगाते हो !

मैय्या तुम्हारी,
पीछे पीछे डोलती है,
खाले कन्हैया माखन,
बार बार बोलती है !

तुम नहीं मानते हो ,
मांगते हो ,चॉकलेट
दूध नहीं पीते हो ,
रोटी न खाते हो !

आवारा घूमती है
सड़कों पे गौएँ,
तुम नहीं चराते हो ,
संग नहीं जाते,
न वंशी बजाते हो !

दोस्तों के संग वन में,
जाओगे कैसे अब ,
सामने पार्क में भी तो,
माँ ,जाने नहीं देती है !

डरती है बेचारी , कान्हा,
कहीं कोई आजाये ना
फिरोती के वास्ते,उठा ,
तुम को ले जाये ना !

टीवी ही देखो या
पी एस पी खेलो ,
विडियो ,मोबाइल गेम,
चाहे जो लेलो ,

घर में ही देखो तुम
कितने खिलोने हैं,
बाहर ना जाओ
लल्ला घर में ही खेलो !

कैसे सुदामा कोई अब
तुम्हारा मित्र बन पायेगा
देख के स्टैण्डर्ड तुम
दोस्त अब बनाते हो !

अब ना मिल पाओगे
कभी तुम राधा से,
गोपिओन के संग कहाँ
रास भी रचाओगे !

निर्मल,सुन्दर , सच्चे प्रेम
को कैसे जतलाओगे,
कौन है राधा ,
क्या जग को बताओगे !

कंस जैसे राक्षस भी
अब मारे नहीं जायेंगे ,
द्रौपदी की लाज भी
तुम बचा नहीं पाओगे.

कल युग है कलयुग
कान्हा ये , इसमें तुम ,
अर्जुन को गीता ,
क्यूँकर समझाओगे

——-ज्योत्स्ना सिंह !

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