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अभिव्यक्ति की आज़ादी —
माना कि तू
आज़ाद है,आज़ाद,
कुछ भी, कहने को ,
पर ,बोलने से पहले,
ठहर
कुछ तो सोच ज़रा,
कि तू जो बोलेगा
यहीं, फ़िज़ाओं में,
हवाओं में, मँड़रायेगा,
देर तलक,दूर तलाक
गूँज
तुझे उसकी,
सुनाई देगी,
तेरे बोल,किसी को,
कहीं घायल न करें
कर न दे
अपमान किसी का !
क्या नहीं जन्मा
तू इसी देश की
धरती पर,
क्या इसी देश ने
पाला न तुझे
नमक भी तो
इसी देश का,
खाया तूने
क्यूँ तेरा खून
बन गया पानी
अपने बोलों से
दूध को माँ
लजाया तूने !
क्यूँ कर दिया
तार तार वो
आँचल माँ का,
था जिसके तले
दिल का सुकून
पाया तूने !
तू है नादान
अभी,और गलत
राह दिखाने वाले
हैं बहुत,
अक्ल से
काम ले,तुझको
बहकाने वाले
है बहुत !
सोच के देख
ज़रा कि
उनका बिगड़ा
क्या कभी कुछ ?
तुम्हें करदेते है
आगे,सियासत
करने वाले
हैं बहुत !
छोड़ कर
देश अपने को
कहाँ जाएगा ??
जहाँ जाएगा
ठुकराया जाएगा !
फिर न आज़ादी
कोई होगी,
किसी शै की
ज़ंजीरें पहनेगा
या गोली खायेगा !
—–ज्योत्स्ना सिंह !
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